ग़ज़ल - रीता गुलाटी 

 

देखा हमने आज नजारा लोगों का,
होता दिखे बुरा हाल अब रिश्तों का। 

भूखे मरते लोग,पड़े है सड़को पर,
राह तके ये भोजन जलते चूल्हों का।

घर टूटे गर दिल  का रिश्ता कच्चा हो,
दोष कहाँ तूफां मे गिरती शाँखो  का।

कतरा कतरा मेरा दिल ये रोता है,
ख्याल नही करते मेरे जज्बातों का।

दर्द मुहोब्बत सभी बयां कर जाता है,
थोड़ा थोड़ा पानी उसकी आँखो का।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा,  चंडीगढ़