ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 

आशिकी भी अब नजर मे आ गयी,
प्यार कर बैठे, खबर मे आ गयी।

अब हिमाकत भी हुनर मे आ गयी,
जब  बुराई हमसफर मे आ गयी। 

उनकी बदनामी पे परदा पड़ गया,
मेरी रुसवाई नज़र में आ गई। 

प्यार कितना वो लुटाता जान पर,
सोचता क्यूँ खाब भर मे आ गयी।

आज नेता जो बताते शान से,
बात उनकी अब नजर मे आ गयी।

चाँद दरिया मे नहाने आ गया,
सारी रौनक मेरे घर मे आ गयी।

लौटना था आपका साहिल से बस,
मेरी कश्ती फिर भँवर मे आ गयी।

खूबसूरत सी लगे चाहत कशिश,
यार ये चाहत नजर मे आ गयी।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़