हवलदार देवी प्रकाश सिंह को मरणोपरान्त मिला वीर चक्र - हरी राम यादव 

 

utkarshexpress.com - भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 में हुए विभाजन के समय से ही भारत और पाकिस्तान के बीच कई बातों पर तनातनी चल रही थी। इसमें जम्मू और कश्मीर का मुद्दा सबसे बड़ा था पर इसके साथ कई अन्य सीमा विवाद भी थे। इनमें सबसे प्रमुख विवाद कच्छ के रण को लेकर था। 20 मार्च 1965 को पाकिस्तान  द्वारा जानबूझ कर कच्छ के रण में झड़पें शुरू कर दी गयीं। शुरुआत में इन झड़पों में केवल सीमा सुरक्षा बल शामिल था। पर दिन प्रतिदिन सीमा पर बिगड़ते हालात को देखते हुए सेना को भी शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
05 अगस्त 1965 को लगभग 30000 पाकिस्तानी सैनिक कश्मीरियों के वेष में नियंत्रण रेखा को पार कर कश्मीर में घुस गये। स्थिति की भयावहता को देखते हुए हमारी सरकार को भी युद्ध की घोषणा करनी पड़ी और अपने ट्रुप्स को युद्ध के मोर्चे पर जाने का आदेश देना पड़ा। भारतीय सेना ने 15 अगस्त 1965 को पाकिस्तान को मुंहतोड़ जबाब देने के लिए नियंत्रण रेखा को पार किया। देश के पश्चिमी मोर्चे पर अलग अलग स्थानों पर भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया।
1965 के इस युद्ध में  भारतीय सेना की 15 कुमाऊं रेजिमेन्ट छम्ब सेक्टर में तैनात थी और दुश्मन को मुंह तोड़ जबाब दे रही थी। इस युद्ध में हवलदार देवी प्रकाश सिंह 15 कुमाऊं रेजिमेंट की एक प्लाटून के प्लाटून कमांडर के रूप में अपने सैनिकों का नेतृत्व कर रहे थे। दोनों  तरफ से हो रही भीषण गोलीबारी में उनके हाथ  में गोली लगने के कारण उनका हाथ बुरी तरह जख्मी हो गया। उनके कम्पनी कमांडर ने उन्हें प्राथमिक चिकित्सा चौकी में जाकर अपने हाथ का इलाज करवाने के लिए कहा लेकिन वह अपने जख्मी हाथ की परवाह किए बिना अपने प्लाटून का नेतृत्व करते रहे।  उन्होंने देखा कि पाकिस्तान के चार टैंक तेजी से उनकी चौकी की तरफ बढ़े चले आ रहे हैं। उन्होंने राकेट लांचर से एक टैंक की ओर निशाना साधा। इसी बीच दुश्मन के ब्राउनिंग गन की एक गोली उनके कमर पर आकर लगी और वे घायल होकर गिर पड़े। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और तुरंत उठ खड़े हुए तथा अपनी चौकी की तरफ बढ़ रहे दुश्मन के टैंक पर फायर कर दिया। देखते ही देखते दुश्मन का एक टैंक आग के गोले में बदल गया और अपने काल को सामने खड़ा देख बाकी टैंक दुम दबाकर भाग खड़े हुए। ज्यादा जख्मी होने के कारण अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए हवलदार देवी प्रकाश सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये।
इस कार्यवाही में हवलदार देवी प्रकाश सिंह ने वीरता, उदाहरणीय साहस, कर्तव्य परायणता और पहल शक्ति का परिचय दिया। उन्होंने सेना के उच्च आदर्शों की परम्परा का निर्वहन करते हुए देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी इस साहसिक वीरता और बलिदान के लिए 01 सितम्बर 1965 को उन्हें मरणोपरान्त वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
हवलदार देवी प्रकाश सिंह, वीर चक्र का जन्म जनपद फैजाबाद (वर्तमान अयोध्या) के गांव रहीमपुर बदौली  में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री आर एन सिंह और  पत्नी का नाम श्रीमती फूलपती सिंह है।  वे 18 अगस्त 1953 को भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और सैन्य प्रशिक्षण के पश्चात 15 कुमाऊं रेजिमेन्ट में पदस्थ हुए थे। 
यथा नामे तथा गुणे को चरितार्थ करने वाले और फैजाबाद की धरती को अपने वीरता के प्रकाश पुंज से प्रकाशित करने वाले हवलदार देवी प्रकाश सिंह की याद में उनके गांव को जाने वाली सड़क का नामकरण शहीद हवलदार देवी प्रकाश सिंह मार्ग रखा गया है तथा रेल मंत्रालय द्वारा उनकी वीरता को नमन करते हुए उनकी याद में फैजाबाद - लखनऊ के बीच पड़ने वाले बड़ा गांव रेलवे स्टेशन पर एक स्मृतिका का निर्माण करवाया गया है। 
आपको बताते चलें कि वीर चक्र युद्ध काल का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है। यह युद्ध क्षेत्र में असाधारण वीरता के लिए दिया जाता है। युद्ध काल के इस तीसरे बड़े सम्मान से अब तक जनपद फैजाबाद के केवल तीन वीरों को सम्मानित होने का सौभाग्य मिला है। जिनमें से सिपाही धनुषधारी सिंह, वीर चक्र (1947-48) का गांव सोनावां, अब नवसृजित जनपद अम्बेडकर नगर का हिस्सा है ।
 - हरी राम यादव  सूबेदार मेजर (आनरेरी) ,अयोध्या, उत्तर प्रदर्श  7087815074