हिंदी दिवस - प्रियदर्शिनी पुष्पा

 

वृहद को बिंदु जो कर दे अमिय गागर वही हिंदी,
करे समृद्ध भाषा को महा सागर वही हिंदी। 

ह से हुंकार जब भरती द से दानव विचारों का,
दलन करके जगा दे प्रेम का आगर वही हिंदी। 

कभी वर्णित कभी गुँजित कभी अनुनाद है हिंदी,
कभी आख्यान का सुरभित सरल संवाद है हिंदी। 

कभी रसखान मीरा सूर तुलसी व्यास की वाणी,
सृजन उर का सरस उत्तर सरल अनुवाद है हिंदी। 

धरा की हरितिमा ब्रह्मांड का संसार है हिंदी,
पिता का ज्ञान माँ के स्नेह का भिंसार है हिंदी। 

हृदय के भाव औ अनुभाव की संवेदना सरि से,
मिटाए प्यास जन-जन की वही कासार है हिंदी।
- प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर