हिंदी गीतिका - राजू उपाध्याय

 

बिखरे 
बिखरे जीवन में,
तेरा नीड़ 
बसाना 
अच्छा लगा..!

बिन 
मांगे तेरा मिलना,,
मुझे यह 
खजाना 
अच्छा लगा..!

जन्मों 
से भटके 
रिश्ते को इक
मनचाही 
पहचान मिली,

कदम 
कदम पर तेरा 
मुझसे,
साथ निभाना 
अच्छा लगा..!

रेतीले 
सागर के तट पर, 
जब भी 
तुमने पुकारा 
मुझको,,

पतझड़
से जीवन में 
तेरा मुझसे,
मधुमास मनाना 
अच्छा लगा..!

सांझ 
उमरिया 
ढलता सूरज,
कैद न कर 
पाया कोई,,

भले न
मिली नजरें पर,
तुझमें 
खो जाना 
अच्छा लगा...!

मंदिर 
और शिवालय 
खोजे,
मेरे बावरिया 
इस मन ने,,

बहुत दूर 
थे सब देवालय,
मुझे तेरे 
दर आना
अच्छा लगा..!

नही शेष 
अब कामना मेरी,
और न 
रहे मायावी 
सपने,,

होम हुए
सब तेरे आगे,
मुझे तुझमें 
रम जाना
अच्छा लगा..!
- राजू उपाध्याय(, एटा, उत्तर प्रदेश