हिंदी नहीं हिन्दी - अनुराधा पाण्डेय
Utkarshexpress.com - सर्वप्रथम तो यह स्पष्ट हो कि १४ सितम्बर को हिन्दी-दिवस मनाया जाता है, न कि विश्व हिन्दी-दिवस। आज की तारीख को हिन्दी भारत की राजभाषा के रूप में मान्य हुई। १० जनवरी सन् २००६ को भारत सरकार द्वारा विश्व हिन्दी-दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इसमें निहित उद्देश्य यह था कि इस प्यारी भाषा को विकसित तथा वैश्विक स्तर पर प्रसारित किया जाए।
अब आते हैं, हिंदी और हिन्दी शब्दों पर छिड़े महासङ्ग्राम पर । ध्यानाकृष्ट हो कि जिसे आप बिन्दी या बिन्दु कहकर सम्बोधित कर रहे हैं, उसका स्वरूप डॉट(.) , बिन्दी अथवा दशमलव जैसा नहीं और न ही उसका नाम बिन्दी अथवा बिन्दु है। इसका वास्तविक नाम अनुस्वार है, जिसका स्वरूप छोटे से वृत्त सदृश(०) होता है।
यही लन्तरानी विसर्ग के साथ भी हुई। उसमें भी अनुपात-चिह्न की भाँति दो बिन्दियाँ नहीं बल्कि दो छोटे गोले हैं। कम्प्यूटर महोदय के कोश में यह छोटा सा वृत्त जैसा दिखने वाला चिह्न किसी ने रखा ही नहीं, जिसके कारण पुस्तकों में इनकी जगह बिन्दु(.)ही छपता रहा। बहुतेरे भाषा-शिक्षक विद्यार्थियों को इसका असली स्वरूप बताते ही नहीं, जिस कारण विद्यार्थी से प्रोफेसर बनने तक की यात्रा इसी बिन्दु पर विश्वास करके होती रहती है।
अब प्रश्न उठता है कि 'हिंदी' शुद्ध है या 'हिन्दी?' तो भैया मेरे इसका उत्तर जानने हेतु पाणिनि की शरण लेनी पड़ेगी ,काहे से कि हिन्दी का अपना कोई समृद्ध व्याकरण है ही नहीं! पाणिनि ने व्यञ्जन सन्धि के अन्तर्गत "परसवर्ण सन्धि" की चर्चा की,जिसका सूत्र है-"अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:।"
इसे हिन्दी भाषा में कहें तो 'यय् प्रत्याहार के परे होने पर अनुस्वार के स्थान पर परसवर्ण होता है।' परसवर्ण का अर्थ है- बाद में जो वर्ण है, उसके सवर्णियों में से आदेश होना। कोई पद हो और उसके मध्य में अनुस्वार(०या •) हो तो अनुस्वार के स्थान पर सामने वाले वर्ण का पञ्चम वर्ण हो जाता है। जैसे-
शां+तः= शान्त:। सं+कल्प= सङ्कल्प ।
इस सूत्र से पहले भी दो सूत्र आते हैं-मोऽनुस्वार: और नश्चापदान्तस्य झलि। इनमें से प्रथम सूत्र पद के अन्त में उपस्थित मकार(म्) के स्थान पर अनुस्वार करता है और दूसरा अपदान्त नकार और मकार के स्थान पर अनुस्वार आदेशित करता है,झल् प्रत्याहार का वर्ण बाद में हो तो। प्रथम सूत्र का उदाहरण-
हरिम् +वन्दे=हरिं वन्दे।
दूसरे सूत्र के उदाहरण-
आक्रम्+ स्यते= आक्रंस्यन्ते।
यशान्+सि= यशांसि।
ऊपर का सूत्र हिन्दी शब्द पर लागू होगा। इसलिए हिंदी नहीं बल्कि हिन्दी शब्द ही खाँटी माना जाएगा। हिं+द करेंगे तो द के पञ्चम वर्ण न् का ही आगमन होगा और सिद्ध होगा हिन्द।
हिंदी शब्द को स्वीकारने वाले इसलिए हिन्दी के पक्षधरों से मुठभेड़ कर बैठते हैं क्योंकि उन्होंने किसी हिन्दी व्याकरण की पुस्तक पढ़ ली होगी! कुछ पुस्तकें हैं,जो यह दावा करती हैं कि अनुस्वार अपने आगे आने वाले वर्ण के पञ्चम वर्ण का बोधक होता है।
अनुज पण्डित