कैसे उड़े अबीर - डॉ.सत्यवान 'सौरभ'
Mar 18, 2024, 23:21 IST
फागुन बैठा देखता, खाली है चौपाल ।
उतरे-उतरे रंग है, फीके सभी गुलाल ।।
सजनी तेरे सँग रचूँ, ऐसा एक धमाल ।
तुझमे खुद को घोल दूँ, जैसे रंग गुलाल ।।
बदले-बदले रंग है, सूना-सूना फाग ।
ढपली भी गाने लगी, अब तो बदले राग ।।
मन को ऐसे रंग लें, भर दें ऐसा प्यार ।
हर पल हर दिन ही रहे, होली का त्यौहार ।।
फौजी साजन से करे, सजनी एक सवाल ।
भीगी सारी गोरियाँ, मेरे सूने गाल ।।
आओ सजनी मैं रंगूँ, तेरे गोरे गाल ।
अनायास होने लगा, मनवा आज गुलाल ।।
बढ़ती जाए कालिमा, मन-मन में हर साल ।
रंगों से कैसे मलें, इक दूजे के गाल ।।
स्वार्थ रंगी जब भावना, रही मनों को चीर ।
बोलो ‘सौरभ’ फाग में, कैसे उड़े अबीर ।।
सूनी-सूनी होलिका, फीका-फीका फाग ।
रहा मनों में हैं नहीं, इक दूजे से राग ।।
-डॉ.सत्यवान 'सौरभ', 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी)
भिवानी, हरियाणा – 127045