मैं चाहती हूँ - सुनीता मिश्रा 

 

मैं नींद चाहती हूँ... 
"बहुत सारी" नींद...
अगर कोई मुझसे यह कहे कि "बहुत सारी"
मतलब कितनी?
तो मै अपने दोनों हाथों को  ठीक वैसे फैलाऊँगी,
जैसे  बचपन में हर सवाल के जवाब मे,
दोनो हाथ फैला कर कहते थे न... 
"इतना सारा"...
क्योंकि मुझे पता है, 
कि उन दोनों बाहों की बीच की दूरी,
कोई नहीं माप सकता...
ठीक उतनी ही, 
बस उतनी ही नींद चाहिए मुझे...
और फिर...
सो जाऊँगी एक लंबी नींद में...
बहुत बड़ी नींद में...
कभी न उठने के लिये..!
.✍️सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर