पुस्तकों की महत्ता - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 

पढ़ना-लिखना बहुत जरूरी, चाहे निर्धन हो या भूप।
शिक्षा के बिन मानव रहता, जैसे अज्ञानी मंडूक।
अहम भूमिका यहाँ निभातीं, युग-युग से पुस्तकें सदैव,
ज्ञानवान शिक्षित जनता ही, बदले निज समाज का रूप

बड़ा निराला मनमोहक है, सभी किताबों का संसार।
कोई तो आनंद बढ़ातीं, कुछ दर्शातीं जग व्यवहार।
झूठ कपट छल दम्भ द्वेष के, दिखलातीं ये रूप अनेक,
वहीं दया करुणा ममत्व सँग, प्रीति प्यार की भी बौछार।2

एक ओर ये ज्ञान बढ़ातीं, बनकर शिक्षा का भंडार।
स्वस्थ मनोरंजन करवातीं, भेंट करें, देवें उपहार।
कई पुस्तकें रोमांचक से, बड़े-बड़े दिखलातीं बिंब,
कुछ में सामाजिकता बसती, जिनसे जग होता दो चार।3

रंग-बिरंगे चित्र सहेजें, कथा-कहानी का संसार।
बाल सुलभ कविताएँ इनमें, जिनसे बच्चे करते प्यार।
पाठ्यक्रमों में जो शामिल हों, उनको पढ़कर बढ़ता ज्ञान,
तरह-तरह के विषय समेटे, विविध पुस्तकों का भंडार।


कभी चाँद पर ये ले जातीं, कभी घुमातीं जंगल-बाग।
कभी पहाड़ों पर चढ़वातीं, कभी दिखातीं कूप-तड़ाग।
यही विगत स्मरण करातीं, बतलातीं हमको इतिहास,
स्वर-व्यंजन लय गीत-काव्य से, उपजातीं मन में अनुराग।

अगर भीड़ में, निपट अकेले, नहीं मिल सके कोई साथ।
पुस्तक बनतीं संगी-साथी, इनको रखिए निज सिर-माथ।
हर तनाव को दूर करातीं, ये मन को देतीं आनंद,
मोबाइल को रखें जेब में, पुनः किताबें पकड़ें  हाथ।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तराखंड