जाने कब से वो ताकती आंखें - राजू उपाध्याय
Jul 23, 2024, 22:30 IST
उस गली के मोड़ पर, वो झांकती आंखें।
खिड़की की ओट से, वो कुछ आंकती आंखे।
जाने अनजाने यूं ही टकराती रहीं अक्सर,
बावले मन की लगन को, वो जांचती आंखें।
सिर्फ कतरा भर ख्वाहिश पलकों पे धरे हुये,
इंतजार में है जाने कब से, वो ताकती आंखें।
उस नजर की शिद्दत , हमने बा-कमाल देखी,
न सोई वो बरसों से, एकटक जागती आंखें।
छुप छुप के रोज ख्वाब चुराती हैं रात भर,
मिलती है तो खुद को, हाथों से ढांपती आंखें।
फकत दो बूंदे इश्क की , न बहला सकेंगी उनको,
रूहानी प्यास में पागल, वो समंदर मांगती आंखें।
बेढब तरक्की के दौर में, इनके हजार रंग देखें है,
रफूगर बन फटी चादर में, वो पैबंद टांकती आंखे।
निगाह की सरगोशियों में, तुम इश्क न ढूंढ लेना,
जादू हैं खुदा का ये,नजर की खोट भांपती आंखे।
- राजू उपाध्याय, एटा, उत्तर प्रदेश