मेरी कलम से - ज्योति श्रीवास्तव
Apr 20, 2024, 23:14 IST
नाम मां का ख़ुदा नहीं होता,
आंचल में गर दुआ नहीं होता।
जिंदगी को दिया संवार भी,
कर्ज मां का अदा नहीं होता ।
नज़र आईने में वो आते रहे हैं,
जिन्हें देख हम मुस्कुराते रहे हैं।
कहे कैसे बातें तुम्हें दिल की हमदम,
झलक भर से हमको सताते रहे हैं।
करें घायल अदा उनकी निशाना हो तो ऐसा हो,
झलक मुझको दिखाते वो सताना हो तो ऐसा हो।
कहें जज़्बात कैसे हम सनम जब सामने हो गर,
हमें उफ़ देख के उनका लजाना हो तो ऐसा हो।
- ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश