किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन (व्यंग्य) - विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

Utkarshexpress.com - अर्जुन जी का नेचर ही थोड़ा कनफुजाया हुआ है। वह महाभारत के टाईम भी एन कुरुक्षेत्र के मैदान में कनफ्यूज हो गये थे, भगवान कृष्ण को उन्हें समझाना पड़ा तब कहीं उन्होनें धनुष उठाया।
पिछले कई दिनों से आज के अरजुन देख रहे थे कि  सत्ता से बाहर हुये नेता गण जनसेवा के लिए बेचैन हो रहे हैं। येन केन प्रकारेण फिर से कुर्सी पा लेने के लिये गुरुकुलों तक में तोड़ फोड़ , मारपीट , पत्थरबाजी सब करवाई जा रही थी। कौआ कान ले गया की रट लगाकर भीड़ को कनफ्यूजियाने का हर संभव प्रयास चल रहा था। तेज ठंड के चलते जो लोग कानों पर मफलर बांधे हुये हैं वे, बिना कान देखे कौए के पीछे दौड़ते फिर रहे हैं। ऐसे समय में ही राजधानी के चुनाव आ गये।  अरजुन जी किसना के संग पोलिंग बूथ पर जा पहुंचे। ठीक बूथ के बाहर वे फिर से कनफुजिया गये। किंकर्तव्यविमूढ़ अरजुन ने किसना से कहा कि ये चारों बदमाश जो चुनाव लड़ रहे हैं मेरे अपने ही हैं। मैं भला कैसे किसी एक को वोट दे सकता हूं? इन चारों में से कोई भी मेरे देश का भला नहीं कर सकता। मैं इन सबको बहुत अच्छी तरह जानता हूं। अरजुन की यह दशा देख इंद्रप्रस्थ पोलिंग बूथ पर लगी लम्बी कतार में ही किसना ने कहा।
हे पार्थ तुम केवल प्याज की महंगाई की चिंता करो तुम्हें देश की चिंता क्यों सता रही है।
हे पार्थ तुम फ्री बिजली , फ्री पानी , फ्री वाईफाई और मेट्रो में पत्नी के फ्री सफर की चिंता करो तुम्हें भला देश की चिंता का अधिकार किसने दिया है।
हे पार्थ तुम  बेटे के रोजगार की चिंता करो , बेरोजगारी भत्ते की चिंता करो तुम्हें जातियों के अनुपात की  चिंता क्यों।
हे पार्थ तुम शहर की स्मार्टनेस की चिंता करो तुम्हें साफ सफाई के बजट की और उसमें दिख रहे घपले की चिंता नहीं होनी चाहिये।
हे पार्थ तुम सीमा पर शहीद जवान की शव यात्रा में शामिल होकर देश भक्ति के नारे लगाओ  भला तुम्हें इससे क्या लेना देना कि यदि नेता जी ने बरसों पहले सही निर्णय लिये होते तो जवान के शहीद होने के अवसर ही न आते।
हे पार्थ तुम देश बंद के आव्हान पर अपनी दुकान बन्द करके बंद को समर्थन दो , अन्यथा तुम्हारी दूकान में तोडफ़ोड़ हो सकती है ,तुम्हें इससे कोई सरोकार नहीं रखना चाहिये कि यह बन्द किसने और क्यों बुलाया?
हे पार्थ तुम्हें सरदार पटेल, आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, सावरकर, विवेकानन्द  या गोलवलकर जी वगैरह को पडऩे समझने की भला क्या जरूरत तुम तो आज के मंत्री जी को पहचानो उनसे अपने ट्रांसफर करवाओ , सिफारिश करवाओ और लोकतंत्र की जय बोलो व प्रसन्न रहो !
हे पार्थ तुम्हें शाहीन रोड पर  धरना देने के लिए पार्टियों का प्रतिनिधित्व करने या पत्थरबाजी के लिए कश्मीर से दिल्ली तक 500 रु रोज के रोजगार पर सवाल उठाने की कोई जरूरत नहीं तुम मजे से चाय पियो , अखबार पढ़ो , बहस करो , टीवी पर बहस सुनो , कार्यक्रमों की टीआरपी बढ़ाओ। हे पार्थ तुम्हें सच जानकार भला क्या मिलेगा? तुम वही जानो जो तुम्हें बताया जा रहा है। यह जानना तुम्हारा काम नहीं है कि जिसे चुनाव में पार्टी टिकिट मिली है उसका चाल चरित्र कैसा है , वह सब किसी पार्टी में हाई कमान ने टिकिट के लिए करोड़ों लेने से पहले, या किसी पार्टी ने वैचारिक मंथन कर पहले ही देख लिया होता है।
हे पार्थ वैसे भी तुम्हारे एक वोट से जीतने वाले नेता जी का ज्यादा कुछ बनने बिगडऩे वाला नहीं , सो तुम बिना अधिक संशय किये मतदान केंद्र में जाओ चार लगभग एक से चेहरों में से जिसे तुम देश का कम दुश्मन समझते हो उसे या जो तुम्हें अपनी जाति का , अपने ज्यादा पास दिखता हो उसे अपना मत दे आओ, और जोर शोर से लोकतंत्र का त्यौहार मनाओ।
किसना अरजुन संवाद जारी था, पर मेरा नंबर आ गया और मैं अंगुली पर काला टीका लगवाने आगे बढ़ गया।
कुरुक्षेत्र में कृष्ण के अर्जुन को उपदेशों से गीता बन पड़ी थी। आज भी इससे कईयों के पेट पल रहे हैं। कोई गीता की व्याख्या कर रहा है, कोई समझ रहा है, कोई छापकर बेच रहा है। इसी से प्रेरित हो हमने भी अरजुन किसना संवाद लिख दिया है , इसी आशा से कि लोग कानों के मफलर खोल कर अपने कान देखने का कष्ट उठायें, और पोलिंग बूथ पर हुये इस संवाद के निहितार्थ समझ सकें तो समझ लें। (विनायक फीचर्स)