मजदूर - अशोक यादव

 

फटे-पुराने मलिन कपड़ों में,
मजदूर की लिपटी है गरीबी।
दानें-दानें के लिए मोहताज हैं,
भूख और प्यास है बदनसीबी।।

दो वक्त की रोटी के लिए,
नजरें ढूँढ रही है कोई काम?
मेहनत का पसीना टपक रहा,
सुबह से हो चुकी है शाम।।

कलम और पुस्तक लेकर, 
घर लौटा आशाओं के साथ।
अपने हाथों लिखो तकदीर,
थमा दिया बच्चों के हाथ।।

मैं तो अनपढ़ और गरीब था,
गिट्टी, रेती से कर ली दोस्ती।
बनो ज्ञान अर्जित से अधिकारी,
तन-मन से लगा दो पूरी शक्ति।।
- अशोक कुमार यादव, मुंगेली, छत्तीसगढ़