मजदूर - मीनू कौशिक
Oct 14, 2024, 22:12 IST
बहाकर के पसीना , महल गैरों के बनाता हूँ ।
लहू को बेचकर , दो वक्त की , रोटी कमाता हूँ ।
कुशल हूं फिक्र मत करना , व्यवस्थाओं की नेमत है ,
क़फ़न को बेचकर पीलूँ , नहीं ग़म पास लाता हूँ ।
मनाकर नाम पर मेरे , कोई दिन क्या दिखाते हो ?
लिखो किस्मत स्वयं अपनी ,भला ये क्या सिखाते हो ?
तिजौरी में तुम्हारी बंद , सदियों से मेरी किस्मत ,
न जाने कौन-से , मुंह से ,भला नजरें मिलाते हो ?
- मीनू कौशिक 'तेजस्विनी', दिल्ली