यादगार रायबरेली यात्रा पुस्तक विमोचन, कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह

 

Utkarshexpress.com रायबरेली - रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच का प्रथम भव्य राष्ट्रीय आयोजन दिनांक 5 मई को 'कलश उत्सव लान' में आयोजित किया गया। जिसमें मुझे बतौर संरक्षक जाना ही था। हालांकि स्वास्थ्य कारणों से मैं खुद बहुत आश्वस्त नहीं हो पा रहा था। लेकिन अग्रज स्वरूप संस्थापक शिवनाथ सिंह शिव जी के स्नेह आग्रह को ठुकराना भी नहीं चाहता था। आयोजन की तैयारियों को लेकर आभासी संवाद निरंतर हो ही रहा था। गोरखपुर से जब आ. अग्रज अरुण ब्रह्मचारी जी, अभय श्रीवास्तव जी एवं लक्ष्मण सरीखे प्रिय अनुज डा. राजीव रंजन मिश्र ने जब आयोजन में शामिल होने की सहमति जताई तो मेरी उम्मीदें बढ़ गईं। क्योंकि राजीव जी और अभय जी के साथ मैं अन्य साहित्यिक आयोजनों में पहले भी जा चुका था, दादा अरुण जी के साथ विभिन्न आयोजनों का भागीदार बनने से उनका अग्रजवत स्नेह हमेशा मुझे मिलता ही है।
अंततः 4 मई को शाम लगभग 7 बजे गोरखपुर से अभय जी के निजी वाहन से सभी बस्ती मेरे प्रवास स्थल पर आ गये।
"बताता चलूँ कि मई' 2020 में पहली बार और 12 नवंबर को दूसरी बार पक्षाघात के कारण इलाज/ स्वास्थ्य लाभ के लिए तभी से बस्ती में हूँ। जहाँ मेरा इलाज मेरे गुरु जी, जो मेरे साले (डा. अजय किशोर श्रीवास्तव) भी हैं, द्वारा चल रहा है और मेरा उन पर इतना विश्वास है कि यदि ये हमें नहीं ठीक कर पाए, तो कोई और मुझे ठीक भी नहीं कर पाएगा।"
रात्रि 8 बजे हमारी रायबरेली यात्रा प्रारम्भ हुई और हम सभी सकुशल रात्रि लगभग 1.30 बजे रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच के संस्थापक और समारोह के आयोजक वरिष्ठ कवि श्री शिव नाथ सिंह जी के आवास पर जा पहुंचे। जहाँ कुछ देर पहले ही ओम प्रकाश द्विवेदी (देवरिया), वरिष्ठ कवि जयशंकर सिंह और इंद्रजीत तिवारी 'निर्भीक' ( वाराणसी) पहुंच चुके थे। शिव दादा ने मिलते ही अपनी बाहों में भर लिया, उस समय तो ऐसा लगा जैसे कोई बड़ा भाई बहुत दिनों बाद अपने छोटे भाई से मिल रहा हो। अन्य लोगों से भी बड़ी आत्मीयता से हम सभी एक दूसरे से मिले। संयोग से हम सभी एक दूसरे से पहली बार मिल रहे थे। फिर जलपान के बाद सभी ने एक तात्कालिक गोष्ठी को आयोजित कर सभी से एक एक दो रचनाएं सुनी/सुनाई, अगले दिन के आयोजन को लेकर विचार-विमर्श का दौर भी चला, बीच-बीच में शिव जी भी शामिल हो जाते थे। लगभग ३ बजे भोजन करने के बाद सभी बिस्तर की आगोश में जा पहुंचे।
अगले दिन सुबह दैनिक क्रियाकलापों के बाद राजीव जी और अभय जी ने मेरी शारीरिक अवस्था के मद्देनजर मुझे कपड़े, जूते, मोजे तक पहनाए, बाल संवारें, मेरे कपड़ों और अन्य सामानों को सुव्यवस्थित ढंग से बैग में रखा। उम्र में काफी बड़े होकर भी अरुण दादा ने बिस्तर पर चाय, नाश्ता पानी खुद लाकर दिया। उल्लेखनीय है कि रास्ते में भी अरूण ब्रह्मचारी दादा, अभय दादा ने अग्रज और राजीव जी ने अनुजवत मेरा हर तरह से ध्यान रखा। नाश्ते के बाद शिव जी के निवास पर ही निर्भीक जी और जयशंकर सिंह जी ने उस समय वहाँ उपस्थित  साहित्यकारों की उपस्थिति में अंगवस्त्र, बाबा विश्वनाथ का चित्र और मोमेंटो देकर मुझे सम्मानित किया। हम सभी लगभग 9.30 बजे आयोजन स्थल "कलश उत्सव लान" पहुँचे। जहाँ साहित्यकारों का आना शुरू हो चुका था। हाल में प्रवेश करते ही शब्द शब्द दर्पण समूह के संस्थापक मानव सिंह राणा और उनकी सुपुत्री ने प्रवल प्रताप सिंह राणा के पिता स्व. ठा. प्रेम पाल सिंह ( दरोगा जी) की स्मृति में प्रेम रत्न सम्मान, अंगवस्त्र और मोत देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर अरुण ब्रह्मचारी, राजीव रंजन मिश्र, ईश्वर चंद्र जायसवाल, खालिद हुसैन सिद्दीकी,अभय श्रीवास्तव, प्रवीण पाण्डेय 'आवारा' आदि उपस्थित रहे।
तब तक आयोजन का शुभारंभ हो चुका था। सौ से अधिक कवियों कवयित्रियों से भरे हाल में वरिष्ठ साहित्यकार हंसराज सिंह हंस ने हिमाचली टोपी पहनाकर अपना आशीर्वाद दिया। अधिसंख्य लोगों से पहली मुलाकात होने का आभास तक नहीं हुआ। जहाँ अग्रजों, बुजुर्गों और वरिष्ठों ने आत्मीय भाव दर्शाते हुए अपना स्नेह आशीर्वाद दिया। हम उम्रों ने मित्रवत बोध कराया। उम्र में छोटे अनुजों, अनुजाओं ने अपने स्नेह भाव का दर्शन कराया। उन्नाव से पधारी बेटियों एकता गुप्ता, अमिता गुप्ता से प्रथम मिलन की खुशी का वर्णन संभव नहीं है। जैसे एक बड़ी अभिलाषा पूरी हो गई।
मुझसे मिलने की चाह में बुजुर्ग कवि सुभाष चन्द्र चौरसिया 'हेम बाबू' (महोबा) ने देखते ही अंक में भर लिया। उस समय प्रसन्नता से उनकी आंखें नम थीं।  हंसराज सिंह हंस, देवी प्रसाद पाण्डेय, निर्दोष जैन लक्ष्य, खालिद हुसैन सिद्दीकी, डा. वीरेंद्र कुसुमाकर, डा. अखिलेश श्रीवास्तव, (संपादक सचिवालय दर्पण) रईस सिद्दीकी, पी.के. प्रचंड, राजकरण सिंह, रामकरण साहू 'सजल', जीवन जिद्दी, अवधेश साहू 'बेचैन', मनोज फगवाड़वी, राकेश पाण्डेय, केशव प्रसाद बाजपेई, सुशील पांडेय, शिव कुमार सिंह 'शिव', प्रदीप पांथ, सुशील पाण्डेय 'अवधी मधुरस', ईश्वर चंद्र जायसवाल, प्रवीण पाण्डेय 'आवारा', इंद्रेश भदौरिया, आर. एम. लाल, छोटेलाल सिंह अमर, सोमेश तिवारी के साथ ओमप्रकाश श्रीवास्तव , रज्जन लाला, प्रभात सनातनी ' राज गोण्डवी, डा. पारसनाथ श्रीवास्तव, पीयूष सिंह, जग नारायण मिश्र, जय प्रकाश सिंह, प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव, कुंवर आनंद श्रीवास्तव, पीयूष आकाश हलचल, हरिनाथ शुक्ल, रामकुमार रसिक, सुनील श्रीवास्तव 'बेचारा' आदि के अलावा बड़ी बहन डा. शशि जायसवाल, गीता पाण्डेय 'अपराजिता', छोटी बहन सुनीता श्रीवास्तव, नीतू आनंद श्रीवास्तव, अन्नपूर्णा मालवीय, ऋतु पाण्डेय 'त्रिधा' आदि से मिलना भावुक करने वाला रहा। जलपान के बीच आयोजन अपनी गति से आगे बढ़ रहा था। बीच-बीच में पुस्तक विमोचन भी होता रहा। इसी बीच विक्रम शिला हिंदी विद्या पीठ भागलपुर के कुलपति डा. संभाजी राजाराम बाविस्कर के विशेष प्रतिनिधि/पीठ के जनसंपर्क अधिकारी/ वरिष्ठ कवि इंद्रजीत तिवारी 'निर्भीक' ने अंगवस्त्र, सम्मान पत्र, मोमेंटो देकर सम्मानित किया और विद्या पीठ की ओर से 'विद्या वाचस्पति विशेष मानद सम्मान' प्रदान किए जाने की घोषणा की।मध्यान्ह भोजन के बाद काव्य पाठ और सम्मान का सिलसिला समापन तक चलता रहा।
मेरा भी सम्मान वरिष्ठों ने संयुक्त और सामूहिक रूप से किया, बेटियों एकता अमिता ने अलग से सम्मान दिया। अनेक लोगों ने मेरे साथ फोटो सेशन कराया। डा. अखिलेश श्रीवास्तव ने सचिवालय दर्पण प्रभु श्री राम विशेषांक और कैलेंडर भेंट किया।
लगभग 4 बजे हमने सभी से विदा लेकर अरुण ब्रह्मचारी दादा , अभय दादा व राजीव जी के साथ वहाँ से वापसी की। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सलोन में अभय जी की छोटी बहन के घर गए। जहाँ उसकी जिद के आगे हम सभी विवश होकर रात्रि विश्राम किए। बहन बहनोई की आवभगत और आत्मिक स्नेह से आल्हादित हम सभी अगले दिन भोर में वहाँ से निकले और दोपहर बाद यादगार और सुखद स्मृतियों के साथ अपने अपने घर आ गये।
रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच का 5 मई का यह आयोजन और आयोजक दादा शिवनाथ सिंह 'शिव' जी की आत्मीयता हमेशा के लिए यादगार बन गया।आज भी इस आयोजन की याद आती है तो आंखें सुखद स्मृतियों के साथ नम हो जाती हैं और मेरा शीष श्रद्धा/सम्मान के साथ उक्त आयोजन आयोजक/संयोजक और रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच के संस्थापक/वर्तमान में मेरे लिए एक अभिभावक की भूमिका निभाने वाले शिवनाथ दादा के चरणों में झुक जाता है।
- सुधीर श्रीवास्तव, गोण्डा, उत्तर प्रदेश