प्रकृति संतुलन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
May 10, 2024, 22:04 IST
(आधार छन्द - वाचिक स्रग्विणी)
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ग्रीष्म का हो गया है पुनः आगमन,
देखते देखते बढ़ गई है तपन।
ताप इतना बढ़ा झेल पाते नहीं,
ज्यों धरा कर रही हर जगह पर हवन।
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छाँह को खोजते है परिंदे पथिक,
जानवर बेकली से निहारें गगन।
बूँद जल की हुईं लुप्त हर ओर से,
प्यास से है विह्वल आज प्रत्येक मन।
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गर्मियों में नहीं जीव प्यासे रहें,
ताल-नदियाँ भरें मेघ बरसें सघन।
हैं जरूरी बहुत सर्दियाँ गर्मियाँ,
संतुलित चक्र मौसम करे मगन।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश