पुरातन वर्ष मैं आभार देती हूँ - अनुराधा पाण्डेय
Jan 1, 2023, 23:03 IST
गत-नव वर्षों का संधिकाल ,
जी करता इसमें हृदसरोज !
तुम से यदि हो जाता मिलाप ।
मर जाता निर्जन विषम नाद,
मिट जाता गत का व्यथा भार ।
कट जाते मन के विविध क्लेश ,
रुक जाता विधि का चिर प्रहार ।
हो आलिंगन में उभय बद्ध ,
यदि क्षण भर भी करते विलाप ।
तुम से यदि हो जाता मिलाप ।
हो जाते मूर्तित विगत स्वप्न,
मिल जाता हृद को ललित पंख ।
छू आते हम नूतन वितान,
तुमको भरकर प्रिय ! प्रणय अंक ।
हो जाता निर्झर हृदय वज्र,
कट जाते कल के सकल शाप ।
तुम से यदि हो जाता मिलाप ।
दो वर्षों का यह संधि काल ।
जी करता इसमें हृद सरोज !
तुम से यदि हो जाता मिलाप ।
-अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली