फागुन - झरना माथुर

 

टेसुओं की गमक जब महकने लगीं,
शोखियां तब दिलों में मचलने लगीं।

 लाल, पीले, गुलाबी, हरे रंग में,
 गोपियां रास लीलायें रचने लगीं।

 बांसुरी पे कन्हैया छेड़े तान जब,
राधिका संग मीरा सवरने लगीं।

राम मौला बिराजे अयोध्या में यूं,
ये गुजियां सिवैयों  में मिलने लगीं।

 जब पिया ने भिगोई चुनर ये मेरी,
 हाथ की चूड़ियां भी खनकने लगीं।

होलिका पे सजी है सभी बस्तियां,
दूरियां आज "झरना" सिमटने लगीं।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड