कविता (उम्र भर) - रोहित आनंद

 

फूल पत्थर पे चढ़ाया उम्र भर,
की इबादत सर झुकाया उम्र भर।

दर-ब-दर करके हमें वो जा रहा ,
हमनें जिनका घर बसाया उम्र भर ।

हमनवा माना जिन्हें हमनें यहाँ,
पीठ पर खंज़र चलाया उम्र भर।

दे गया सौगात में, वो तीरगी मुझे , 
जिनके खातिर दिल जलाया उम्र भर।

आप काँटे  बो रहे  उस  बाग  में ,
हमने चमन में गुल खिलाया उम्र भर।

चार पल में चल दिया वो तोड़कर,
जो कसम हमनें निभाया उम्र भर।

हो भरोसा कैसे उसकी बात पे,
बेसबब जो सच छुपाया उम्र भर।

चंद मुस्कानों  की चाहत है उन्हें,
आपनें जिनको रुलाया उम्र भर।।
- रोहित आनंद,  शिवपुरी, पूर्णिया बिहार