अभिमान - राजेश कुमार झा 

 

सतयुग का रावण बहुत बड़ा था विद्वान,
पर किसी तरह उसको हो गया अभिमान।
जिसके घमंड ने न जाने कितनो ने दिए प्रान, 
फिर भी न कम हुआ उसका मान।

कहते जब सर्वनाश होना होता है,
तब संजोग भी एक साथ होता है।
न रावण सुरपनाखा की बातो में आता,
न सीता मां को लकीर लांघकर लाता।

पर जिसकी मति होती है भ्रष्ट हो,
तो ईश्वर भी खुद उससे रूठ जाता ।
रावण भी बहुत बड़ा था बलवान।
पर किसी तरह हो गया उसको अभिमान।

जिसने जीता था ब्रह्मा और महेश को,
बस कुछ नही समझता था जगदीश को।
जगदीश ही राम बनकर आए,
रावण का अभिमान मार गिराए ।

अंत समय में रावण श्री राम श्री राम चिल्लाए,
मिट्टी में मिल गया अभिमान था ।
सतयुग का रावण बड़ा विद्वान था,
पर किसी हो गया उसको अभिमान था।
– राजेश कुमार झा, बीना,  मध्य प्रदेश