अंगुली थाम मेरे सपनो की - राजू उपाध्याय

 

जब-जब
उपवन से झरते,
तुमने हरसिंगार
दिये हैं...!

हंसते
खिलते सुमन सभी,
मैंने तुमपे वार
दिये हैं..!

अंतर्मन
की तू भाषा है,
जीवन की
मधुरिम आशा,,

अंगुली थाम
मेरे सपनो की,
तूने द्वंद संवार
दिये हैं...!

मन-मानुष
न समझा तेरे
मन मोहक
स्पंदन को,,

तेरी प्रेम
छुवन ने मेरे
सौ-सौ जन्म
निखार दिये हैं..!

माना
हमने विषपाई तू,
पर अंतस घट
में अमृत है,,

दो बूंद
का सागर देकर,
तूने मेरे करम
सुधार दिए हैं...!

मैं त्रुटियों
की अनुकृति हूं,
पावन मूरत
कैसे गढ़ लूं,,

थोड़ी 'मेहर'
आस संजोई,
तेरे चरण
पखार दिये है...!
- राजू उपाध्याय, एटा , उत्तर प्रदेश