रतिमाह - अनुराधा पाण्डेय 

 

सरसों के पीले पृष्ठों पर,कलियों पर, वल्लरियों पर,
चूम -चूम अलिदल ने मुख से ,ऋतु का नाम सुहागन लिक्खा..।
लगता ज्यों इक तन्वी चपला,
लहराती हो पीत वसन में। 
जीने की उद्दाम कामना ,
राग जगाती हो ज्यों मन में। 
कानों में मृदु मलयानिल के,लगता उसने साजन लिक्खा। 
चूम-चूम अलिदल ने मुख से,ऋतु का नाम सुहागन लिक्खा। 
हरित-हलद का परिरंभन-सा
होता दिखता परिधानों में। 
विरह अंत लगता विरही का,
चुंबन रस घुलता कानों में। 
प्रकृति सुंदरी ने जगतामृत,ठौर-ठौर आलिंगन लिक्खा। 
चूम-चूम अलिदल ने मुख से,ऋतु का नाम सुहागन लिक्खा। 
जाने कैसे प्रणय सूचना,
मिलती मंजुल मंजरियों को ।
कौन थमाता मधुरस तृष्णा
नेह निमज्जित वल्लरियों को ।
मन्मथ-सा मन होता लगता, किसने रति अनुगुंजन लिक्खा?
चूम-चूम अलिदल ने मुख से, ऋतु का नाम सुहागन लिक्खा। 
पीली सरसो की अवली पर ,
हो जाता रतिनाह समर्पित ।
ऋतु बासंती करती लगती ,
अपनी विभु तरुणाई अर्पित ।
प्राण वहीं अटका रहता है, जहाँ विहग ने निधिवन लिक्खा। 
चूम-चूम अलिदल ने मुख से, ऋतु का नाम सुहागन लिक्खा। 
भेज दिया है मधुमासी ने,
जड़ चेतन को नेह निमंत्रण। 
प्रणय गीत गाता लगता है ,
रुन-झुन तृण-तृण ,गुन-गुन कविमन। 
चंदन चर्चित वातायन है, लगता रति ने यौवन लिक्खा ।
चूम-चूम अलिदल ने मुख से, ऋतु का नाम सुहागन लिक्खा।
अनुराधा पाण्डेय , द्वारिका , दिल्ली