दोहें - रूबी गुप्ता 

 

प्रेम प्रीति मनमीत से, भूली अपना हाल,
नींद चैन ग़ायब हुए, मन भी है बेहाल।

हें प्रियतम दर्शन दिखा, दीजै मन को चैन,
तेरे बिन कटते नही, मुझसे कोई रैन।

रचना हूँ मै ईश की, मुझको कर स्वीकार,
हे मन के साथी सुनो, रूबी रही पुकार।

जब से मन ने कर लिया, मनमोहन से प्यार,
जोगन  रूबी हो गयी , वृन्दावन घर बार।
- रूबी गुप्ता, दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश