आ गइल सावन - अनिरुद्ध कुमार

 

हरी चुनरी धरा ओढ़े बतावे आ गइल सावन,
घटा घनघोर मडराये जतावे आ गइल सावन ।

सजल नव रंग में धरती कहेकी प्यार हीं जीवन,
पिया परदेश से अइले लुभावे आ गइल सावन ।

मचलते झूमके गाये सखी के संग में कजरी,
लगल झूला भरें पेंगे झुलावे आ गइल सावन ।

नजर में नेह के बादल फुहारें देख मतवाली,
बटोरीं प्रेम के मोती लुटावे आ गइल सावन ।

हवा में प्यार की खुशबू लगे मदहोश जड़चेतन,
बहारों के सितारों से सजावे आ गइल सावन ।

नजर भर देख लीं नभ के घटा रंगीन बलखाये,
बढ़ा दे धड़कनें दिल की जगावे आ गइल सावन ।

जला के नेह के बाती रहें खुशहाल हर कोई,
बुलाये प्यार से दिलवर झुमावे आ गइल सावन ।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड