पावस में सावन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 

अर्थतंत्र पर पड़े पावसी प्रभाव बड़ा 
अच्छा मानसून उपभोग को बढ़ाता है।
कृषक कमाए जो भी उसमें बचाए थोड़ा
बिना बात धन कभी नहीं वो लुटाता है।
अच्छे यंत्र सही खाद उपयोग कर वह
मन लगा श्रम कर उपज बढ़ाता है।
कहते ‘प्रवीण’ सही सुनो सब मन लगा
भारत की उन्नति से पावस का नाता है।

गद्य पद्य हर विधा सावन बिना अधूरी
साहित्य में पावस का उत्तम स्थान है।
कवियों लेखकों द्वारा लेखनी प्रयोग कर
हर युग हर काल होता गुणगान है।
सदियों से लिखा गया क्रम कभी टूटा नहीं
ऋतुओं के वर्णन का चला अभियान है।
बरखा सुहानी ऋतु प्राणियों के मन बसी
प्रकृति भी साथ जुड़ छेड़े नई तान है।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश