सावन के झूले - मधु शुक्ला

 

सावन  के  झूले मन आँगन, में  बहार ले आते हैं, 
मेल - जोल, सद्भावों के प्रिय, नगमें हमें सुनाते हैं।

राग सुरीले  जन  भावो  को, दान  उमंगें  करते  हैं,
सुप्त चेतना को जाग्रत कर, संस्कृति उर में भरते हैं।

जन जीवन  वर्षा  पर  निर्भर ,रहता  झूले  कहते  हैं, 
हरियाली को देख तभी तो, कुसुम हृदय के खिलते हैं।

पार्वती  संग  भोलेबाबा ,  झूला   झूलें   सावन  में,
सकल सृष्टि आनन्दित होती,प्रेम उमड़ता है मन में।
- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश