मेरे जीवन के शुक्लपक्ष - अनुराधा पांडेय

 

तुम अनथक अतिशय अनुरागी,

मेरे जीवन के शुक्ल पक्ष।

मैं थक कर जब जीवन रण से

लौटी उदास हारी -हारी।

था लगा मुझे जब-जब पथ में,

है जीना मरने से भारी।

तब तब मेरे सिर रखने हित-

था लब्ध तुम्हारा वृहद वक्ष।

तुम अनथक मेरे अनुरागी,

मेरे जीवन के शुक्ल पक्ष।

मेरे सारे अवसाद गरल,

तुमने हँस-हँस कर पी डाले।

पथ के सारे कटु शूल चुनें

पग के सारे व्रण सी डाले।

बस एक तुम्हारा ध्येय रहा -

मैं करूँ विजय नित बनूं दक्ष ।

तुम अनथक मेरे अनुरागी,

मेरे जीवन के शुक्ल पक्ष।

तुमने धधकाया हर क्षण ही,

मेरे हृद में विश्वास अनल।

तुम अनिल-नीर सम संग रहे,

रक्खा मुझको जाग्रत प्रतिपल।

तुमने यह भान कराया जय..

आएगी चल मेरे समक्ष।

तुम अनथक मेरे अनुरागी।

मेरे जीवन के शुक्ल पक्ष

 - अनुराधा पांडेय, द्वारिका , दिल्ली