तबौ माननीय कहलाइ रहे (अवधी रचना) - हरी राम यादव

 

अपनी बहु पेंशन सेंशन कर,
     दुसरे की पेंशन भार बताइ रहे।
खानि खानि कै टैक्स लगाइके,
     "हरी" तुहैं लाचार बनाइ रहे।
जानइ चाहय सब कुछ तोहार,
     पर आपन सब कुछ छुपाइ रहे।
इहै समानता कै अधिकार अहै ?
    झूठै सब समान कहि चिल्लाय रहे।।

ऐय जवन चांहय तवन कहैं,
     अपने कहे पै न अड़ियाय रहे।
तोहरे बोलय पै तरह तरह के,
    कानून बनाय प्रतिबंध लगाइ रहे।
जौ याद दिलाइ दिया इनका,
    तौ केस बनाई जेल पठाय रहे।
अभिव्यक्ति कै इहै स्वतंत्रता है?
      सच कै सामना करै से धाय रहे।।

आगे पीछे गारद लैके घूमय,
   खुद का जनसेवक बताइ रहे ।
तोहरे खातिर आयोग बने,
   पर अपने खातिर हाथ उठाइ रहे।
सिर के ऊपर अहै मुकदमा ,
    तबौ माननीय कहलाइ रहे।
कहां एक कानून अहै देश मा,
     जेसे माननीय देश चलाइ रहे।।
- हरी राम यादव, अयोध्या , देहरादून