यादों की संदूक - सुनील गुप्ता

 
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आओ 
खोल देखें फिर से,
अपनी यादों की संदूक को  !!1!!

चलो 
फिर से इन्हें संभालें,
देखें रखे कीमती सामान को !!2!!

खोलो 
तो सही वक़्त निकाल के,
सहेजो ज़रा बेशकीमती स्मृतियों को !!3!!

भुलाओ 
न रखे संदुकों को,
करलें याद फिरसे बचपन को !!4!!

छिपाओ 
न इन्हें अपनों से,
दिखलाए चलो भूले खजाने को !!5!!

हर्षाओ 
फिर से जीवन में,
करके याद पुराने किस्सों को !!6!!

बरसाए 
चलो प्रेम आनंद खुशियाँ,
खोलते यादों की पिटारी को !!7!!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान