समय सिंधु - प्रियंका सौरभ

 

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार।

छोटी-सी ये ज़िंदगी, तिनके-सी लाचार।।

सुबह हँसी, दुपहर तपी, लगती साँझ उदास।

आते-आते रात तक, टूट चली हर श्वास।।

पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक।

जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक ।।

होनी तो होकर रहे, बैठ न हिम्मत हार ।

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार ।।

पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव ।

कैसे पहुंचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव ।।

रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष ।

नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष ।।

तप कर दुःख की आग में, हमको मिले निखार ।

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार ।।

दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात ।

सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात ।।

चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार ।

चलने से कटता सफ़र, चलना जीवन सार ।।

काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार ।

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार ।।

छोटी- सी ये ज़िंदगी, तिनके सी लाचार ।

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार।।

(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह 'दीमक लगे गुलाब' से।)

 -प्रियंका सौरभ उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

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