वंदन हो - ममता जोशी

 

बचपन से मैं पढ़ती आई,
ज्ञान गंगा माथे पर चमकती,
पढ़ी बात को यूं ही टाला,
कभी ना उसको सच समझती।
देख प्रतिभा की देवी तुमको, 
मानो सपना सच हुआ आज, 
सरल सौम्य स्वभाव है जिनका, 
आभामंडल पर चमकता ताज।
हर शब्द से करूं मैं श्रृंगार, 
आपका वंदन हो बारंबार।
- ममता जोशी, देहरादून