किधर जाए - अनिरुद्ध कुमार

 
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बोल ना आदमी किधर जाए,
रात-दिन सोंचते गुजर जाए। 

नफरती बात से जले तन-मन,
देख माहौल दिल लहर जाए। 

दर-ब-दर बे-कदर फिरे मारा,
जिंदगी चाहता सँवर जाए। 

आफतों से घिरा रहे हरदम,
ढ़ूढ़ता राह की उबर जाए। 

आज इंसान भटकता दर-दर, 
गर मिले छांव तो ठहर जाए। 

उलझनें लाख जी रहा इंसा,
दो घड़ी चैन से पसर जाए। 

अब कहाँ प्यार पे भरोसा'अनि',
लोग पहचान ले अगर जाए। 
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड