क्यों जला मेरा गला ? -  भूपेश प्रताप

 

बता कोकिल ! 
क्यों जला तेरा गला? 
मौन साधे स्वर छिपाए
वेदना के गीत गाती 
गर्मियों की रात में न चैन पाती 
 धधक कर तन लू लपेटे 
दौड़ती वन-वन जलाती 
बता तेरे मधुर स्वर को 
आग अब किसने लगाई?
बता कोकिल व्यथा का क्यों भार ढोती?

सुनो मानव!
कंठ मेरा रुँध गया है 
दु:ख से मन भर गया है 
पीढ़ियाँ गुज़री हमारी 
गीत हमने बहुत गाए 
दान स्वर का किया हर दिन
किंतु आया आज दुर्दिन 
बन गए तुम बहुत लोभी 
आग जंगल में लगाई
बाल-बच्चे जल रहे हैं 
फिर भी अब तुम पूछते हो 
क्यों जला मेरा गला?
- भूपेश प्रताप सिंह, दिल्ली