महिला दिवस - कालिका प्रसाद
नारी
अबला या सबला
वस्तु नहीं हूँ
कि तौल लोगे
तराजू में
और लगाकर
ठप्पा अबला या
सबला का
छोड़ दोगे समाज के
बाजार में
और लोग बोलियां
लगाएंगे
अपने-अपने हिसाब से।
अबला हुई तो
न जाने कितने
राक्षसी नाखूनों से
खरोंची जाएंगी,
शब्दों के नश्तर से
बेंधी जाएंगी,
होगा चीर हरण
सड़कों पर,
घर-बाहर दुत्कारी
जाएंगी
हेय होंगी पुरुष जननी
होकर भी
उन्हीं की नजरों में।
सबला हुईं तो
काली,दुर्गा, चंडी
महाकाली
कहलाएंगी,
नारी ही फिर नारी
की दृष्टि में
कहीं उच्च, कहीं हेय
बन जाएगी
नर के शब्दों में
सम्मान कम
लाचारगी ज्यादा
होगी,
बात-बात में अवहेलना
बात-बात में
छींटाकशी होगी
मुँह पर यस मैम
पीठ पीछे बुराई चलेगी।
सच नारी की उड़ान
कितनी भी
ऊँची हो
पुरुष प्रधान समाज में
नारी की कीमत
कुछ भी नहीं
आसमां पर पाँव
रख ले
जमीं खींच ली
जाती है
कानून बने हक हुकूक के,
खिल्ली उड़ाई
जाती है।
मगर समय बदल रहा,
बदल रहे हालात भी
नारी बन रही
फिर नारायणी,
काली का अवतार भी,
लड़ रही अपने
अधिकार के लिये
बुन रही सपने अपने
और बना रही
अपना आकाश भी।
- कालिका प्रसाद सेमवाल
चार बाग रेलवे स्टेशन
लखनऊ उ०प्र०