"यमराज मेरा यार" हास्य व्यंग्य अनुपम दस्तावेज - डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव

 

Utkarshexpress.com - आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी एवं आपाधापी के युग में लोगों के चेहरे से मुस्कान तो जैसे गायब ही हो गईं है। यदा कदा कभी मुख पर मुस्कान आ भी जाती है तो वह बस एक बनावटी मुस्कान भर है। मानव समाज का हर प्राणी आज एक और एक ग्यारह के घन चक्कर में पड़ा रात-दिन पिसता रहता है और वह बेहद परेशान नजर आता है। मनुष्य के जीवन में विभिन्न प्रकार की लगभग निरंतर अर्थात आए दिन उत्पन्न होने वाली अनेक आर्थिक, सामाजिक एवं घरेलू विषम स्थितियां, परिस्थितियां एवं परेशानियाँ उसे चारों तरफ से इस कदर घेरे हुए हैं कि वर्तमान में एक सामान्य, साधारण, सज्जन व्यक्ति के लिए उनसे उबर पाना या मुकाबला कर पाना सिर्फ टेढ़ी खीर जैसा ही लगता है। इंसान क्या करे? कहां जायें? जिससे कुछ आय हो सके और इस मंहगाई के आलम में परिवार के सदस्यों के जीविकोपार्जन का कुछ सहारा हो सके। ऐसी अनेक अधेड़बुन में आज इंसान उलझा उलझा हुआ पिसता जा रहा है। मन हँसी ठिठोली के लिए भी आज तरस रहा है। वृद्ध माता-पिता की देख-रेख एवं उनका दवा-इलाज, बीबी-बच्चे की आवश्यक और वास्तविक जरूरतें, भोजन-पानी, वस्त्र,शिक्षा, पढ़ाई-लिखाई, भरण-पोषण इत्यादि की आम जनमानस के सामने इतनी विषम और जटिल समस्याएं हैं जिसके मकड़ जाल में मनुष्य फंसा हुआ ठीक ढंग से सांस भी नहीं ले पा रहा है और न इन परिस्थितियों से उबरने का कोई रास्ता ही नजर आ रहा है। हर व्यक्ति तो आज उसी में उलझा हुआ किसी तरह बस अपना जीवन यापन कर रहा है।आज ऐसा लगता है जैसे मानव किसी ऑक्टोपस के चंगुल में चारो तरफ से फंसा हुआ है,उससे छूटने का असफल प्रयास कर रहा हो जो मृत्यु के पहले मुमकिन ही नहीं असंभव भी है। इसी तरह जीवन की मकड़ी के जाल से भी छूटने के लाख भरसक प्रयत्न करने के बावजूद भी उससे छूटने में इंसान सदा असमर्थ दिखाई देता है। हमारे सामने हमेशा हर काम के लिए  समयाभाव और सब कुछ जल्दी-जल्दी करने का उस पर भी मन न भरने का होता है। इसीलिए हमें शांति नहीं मिलती और न हमारी आवश्यकताएं ही पूरी हो पाती हैं। हमारे आसपास का वातावरण और उसमें सबसे आगे निकलने की होड़ में मानवीय जीवन नर्क बन गया है। ऐसे में किसी के चेहरे पर कोई मुस्कान कैसे ? और कहां ? आ सकती है। जब मन में परिस्थितिकीय खिन्नता भरी हो और उससे निकलने की व्यग्रता वाली सोच भी  तो मनःस्थिति शांत रह ही नहीं सकती, वैचारिक उथल-पुथल तो जारी ही रहेगा। ऐसा नहीं कि कोई इंसान अपने जीवन में  मुस्कराना, हंसना और खिलखिलाना नहीं चाहता है, हर कोई ऐसा करना चाहता है जबकि प्रत्येक मानव इसी सुख सुविधा के लिए ही तो रातों दिन बैल बना हाड़ तोड़ मेंहनत करने में हमेशा लगा रहता है लेकिन इसके बावजूद भी यदि इंसान की मूलभूत जरूरी आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं हो पाती तो कोई परिश्रमी इंसान भला खुश कैसे? रह सकता है।
यद्यपि कि कोई भी कवि, कवयित्री, लेखक,साहित्यकार या व्यंग्यकार आज के मानव की मनोदशा से भली-भांति परिचित हैं । साहित्यिक, सामाजिक,धार्मिक, परोपकारी, मानवता पूर्ण सेवाएं देने का मन में भाव रखते हुए हरसंभव ऐसा प्रयास किया करते हैं कि वह आज के परेशान मानव समाज के चेहरे पर थोड़ी सी हंसी और मुस्कान ला सके।
ऐसे में वातावरण में गद्य और पद्य लेखन में महारत प्राप्त साहित्यकारों के हास्य व्यंग्य मिश्रित रचनाएं किसी महौषधि से बिल्कुल भी कम नहीं है। ज्यादातर लोगों के लिए साहित्यकारों और व्यंग्यकारों द्वारा लगाई जाने वाली यह एक ऐसी गुदगुदी है, जिससे गुदगुदाने में हरेक आदमी अपने को छुड़ाने का प्रयास करता है, परंतु आंतरिक रूप से तो वह चाहता है कि उसे और भी गुदगुदाया जाए ताकि उसे कुछ छण के लिए ही सही लेकिन इससे उसे सुखद अनुभूति तो ही बल्कि एक नयी ऊर्जा का भी  उसमें संचार हो सके। वास्तव में हास्य व्यंग्य न सिर्फ एक ऐसा कटाक्ष है, बल्कि यूं कहें कि यह एक ऐसा तमाचा है जिसके दर्द में भी व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती है और मानव मन इसे खुशी-खुशी सहन भी कर लेता है। खासतौर पर रंग पर्व होली के अवसर पर विभिन्न शहरों में आयोजित होने वाले खासकर प्रतापगढ़ में होने वाले महामूर्ख सम्मेलन में व्यंगात्मक रचनाएं पढ़ कर लोग खूब हंसी ठिठोली करते हैं और अपने ऊपर पढ़ी गई रचना को सराहते भी हैं और हो सकता है उपस्थित जन में  से कोई एक और ,एक और की फरमाइश भी कर दे।
गोंडा (अवध क्षेत्र) उ.प्र. की धरती कलम की बहुत धनी रही है क्योंकि यहां बहुत सारे कवि कवयित्री लेखक व साहित्यकार अपने हिन्दी साहित्य सेवा के माध्यम से लोगों में नवीन उत्साह, नवीन उमंग और नवीन ऊर्जा भरने तथा नवांकुरों में साहित्य के प्रति नई चेतना भरने का निरंतर प्रयत्न और सफलतम प्रयास कर रहे हैं। जिनमें आज देहदानी श्री सुधीर श्रीवास्तव जी का भी नाम न सिर्फ़ ख्यातिप्राप्त साहित्यकार के रुप में आदर से लिया जाता है बल्कि उनकी साहित्य सेवा, चरित्र, व्यक्तित्व, प्रेमभाव और लोगों को इज्जत देने और पाने का उनका निजी गुण और सहयोग करने की भावना भी अनुकरणीय है। ऐसे मानव आदरणीय सुधीर श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित 'यमराज मेरा यार' हास्य व्यंग्य कविता संग्रह का कुछ अंश मुझे पढ़ने का सुअवसर और सौभाग्य प्राप्त हुआ। वास्तव में ये एक पुस्तक नहीं अपितु हास्य व्यंग्य का एक ऐसा नवीन गुलदस्ता व महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें सुधीर जी ने यमराज को अपना दोस्त मानकर उनसे अपनी हरेक वेदना को प्रकट करने का जिस सजीव चित्रण की कोशिश की है वह न  केवल काबिले तारीफ है, प्रशंसनीय है, ऐतिहासिक है बल्कि अनुकरणीय भी है। मुझे पूर्ण विश्वास है यह पुस्तक लोगों को यह सोचने पर भी विवश करती है कि मन को गुदगुदाने में यमराज जैसे देवता जो डर का अभिप्राय माने जाते हैं वह भी सहायक हो सकते हैं। एक दो नहीं पूरे संग्रह में यमराज और खुद के माध्यम से अपने कटाक्ष रखने का अत्यंत सुंदर प्रयास और बहुत ही नवीनता लिए हुए एक अनुकरणीय कृत्य बन पड़ा है जो जीवन के हर मोड़ पर मानवीय समाज के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए पूर्ण रूप से पर्याप्त है । आप दोनों की व्यंगात्मक शैली में एक दूजे से बातचीत करते हुए इतना भावपूर्ण और सुरुचिपूर्ण लगता है कि पुस्तक को बीच में छोड़ने का मन ही नहीं करता। ये पुस्तक तो वास्तव में एक पुस्तक नहीं बल्कि एक ऐसा ग्रंथ है जो समाज में फैली हुई तमाम कुरीतियों,विसंगतियों और व्याप्त समस्याओं की ओर इंगित कराते हुए उससे बाहर निकलने का एक मार्ग प्रदर्शक बन गया है जो हमेशा साहित्यकारों एवं नवांकुरों का मार्ग प्रशस्त करने का एक सफल दस्तावेज के रूप में हिंदी साहित्य समाज और साहित्यकारों से मान्यता अवश्य प्राप्त करेगा। भविष्य में जन मानस के हृदय में नव उमंग और नवीन ऊर्जा भरने में कामयाब होगी ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है और आदरणीय प्रियवर सुधीर जी को उनके इस श्रमसाध्य सृजन एवं उनके मन्तव्य को शत प्रतिशत सार्थक सिद्ध करेगी। ऐसा मेरा ही नहीं बल्कि अन्य सभी साहित्य मनीषियों का मानना भी हो सकता है।
इस दुर्लभ और महत्वपूर्ण पुनीत कार्य के लिए देहदानी कविवर श्री सुधीर कुमार श्रीवास्तव जी को मैं मेरी बहुत-बहुत हार्दिक बधाई, मंगलमय शुभकामनाएं एवं अपना विशेष आशीष देना चाहता हूं। आप अपनी नयी सोच के साथ अपने साहित्य सृजन से लोगों को सदैव नयी दिशा और ज्ञान देते रहें।
मैं आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं, मंगलमय शुभकामनाओं सहित प्रेषित।
- ज्ञान विभूषण डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव प्रतापगढ़,उ.प्र