शस्त्र उठा नारी हाथो मे==Bairagi Gopaldas 

शस्त्र उठा नारी हाथो मे, गर तुझको चलना राहो मे भूल गई क्या दुर्गा शक्ती, मती भ्रष्ट पापो की बस्ती कर दे कलम काट दे मस्तक, जैसे मगन नाच मे नृतक बिखरे रक्त,रक्त से हुडदंग, हाहाकार कंप हो कंपन तोड बंध आंगन सा संगम, शस्त्र उठा नर बैठा वेदम सोयी पीड़ा चीख रही है, ...
 

 

शस्त्र उठा नारी हाथो मे,
गर तुझको चलना राहो मे

भूल गई क्या दुर्गा शक्ती,
मती भ्रष्ट पापो की बस्ती
कर दे कलम काट दे मस्तक,
जैसे मगन नाच मे नृतक

बिखरे रक्त,रक्त से हुडदंग,
हाहाकार कंप हो कंपन
तोड बंध आंगन सा संगम,
शस्त्र उठा नर बैठा वेदम

सोयी पीड़ा चीख रही है,
स्त्री ममता से रीत रही है
है दुश्मन घर आंगन सब मे,
पापी नजर बिछी है जग मे

लोक लाज से तुझको ठगने,
बैठे नर संग पाप के सपने
नजर उठा घूंघट .श्रृंगारी ,
काली रूप धरण की बारी

स्वामित्व सभा है पुरूष प्रधानी,
तुम घर मे बस नाम की रानी
निर्णय अटल रहा राजा का,
एकल थी जिसमे कुछ मनमानी
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बैरागी गोपाल