नव वर्ष, ले, खुशियाँ मिले = पं. संजीव शुक्ल सचिन

यह नित नवल, उत्कर्ष दे। नव वर्ष यह, बस हर्ष दे। हों सब सफल, है कामना। सुंदर सुखद, यह भावना। उर में नहीं, हो द्वेष अब। जग से मिटे, विद्वेष सब। मिल कर रहे, सब साथ में। हों पुष्प ही, हर हाथ में।। अब प्रेम हर, उर में पले। भर नेह हिय, में सब चलें। ...
 

यह नित नवल, उत्कर्ष दे।
नव वर्ष यह, बस हर्ष दे।
हों सब सफल, है कामना।
सुंदर सुखद, यह भावना।

उर में नहीं, हो द्वेष अब।
जग से मिटे, विद्वेष सब।
मिल कर रहे, सब साथ में।
हों पुष्प ही, हर हाथ में।।

अब प्रेम हर, उर में पले।
भर नेह हिय, में सब चलें।
आतंक का, अब नाश हो।
भयवाद का, सर्वनाश हो।‌।

अब हो कृषक, का त्रास कम।
हँसता रहे, हो ह्रास कम।
नव वर्ष, ले, खुशियाँ मिले।
अब अन्न से, खेती खिले।।

पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’