कभी तो मुझे चाह =विनोद निराश

कभी तो मुझे चाह , मेरी सूरत पे मत जा, देख मेरा प्यार , अपनी जरूरत पे मत जा। रहो बनके मसीहा, सिर्फ मुहब्बत का मेरी , दुनिया की बनाई हुई, नफरत पे मत जा। दुनिया-ए-इश्क़ में, जुदाई एक सबक है , मगर तू दुनिया की, मुहब्बत पे मत जा। इश्क़ की रहगुजर है, ...
 

 

कभी तो मुझे चाह , मेरी सूरत पे मत जा,
देख मेरा प्यार , अपनी जरूरत पे मत जा।

रहो बनके मसीहा, सिर्फ मुहब्बत का मेरी ,
दुनिया की बनाई हुई, नफरत पे मत जा।

दुनिया-ए-इश्क़ में, जुदाई एक सबक है ,
मगर तू दुनिया की, मुहब्बत पे मत जा।

इश्क़ की रहगुजर है, बड़ी तबील यारों ,
इसलिए इश्क़ में, सहूलियत पे मत जा।

कभी उसके बारे मे भी, सोचा कर निराश,
हमेशा की तरहा, अपनी हसरत पे मत जा।

,,,,,,,,,,,,,,विनोद निराश, देहरादून