“मोबाइल का नशा”== डा.अंजु लता सिंह

मोबाइल का नशा है ऐसा जीना है दुश्वार… शैशव पर अत्याचार है ये तो बदल गया संसार, गुल्ली-डंडा,कंचे,कैरम सबका बंटाधार, अपनों से सब दूर हो गए सिमट गया संसार , ऑनलाइन रूठे हैं अब तो ऑनलाइन इकरार , मोबाइल का नशा है ऐसा जीना है दुश्वार… शैशव पर… खत लिखना तो खतम हुआ है, आना ...
 

मोबाइल का नशा है ऐसा जीना है दुश्वार…
शैशव पर अत्याचार है ये तो बदल गया संसार,
गुल्ली-डंडा,कंचे,कैरम सबका बंटाधार,
अपनों से सब दूर हो गए सिमट गया संसार ,
ऑनलाइन रूठे हैं अब तो ऑनलाइन इकरार ,
मोबाइल का नशा है ऐसा जीना है दुश्वार…
शैशव पर… खत लिखना तो खतम हुआ है,
आना जाना भरम हुआ है,
मिलने जुलने का वक्त नहीं है,
करते मिथ्या प्यार ,
मोबाइल का नशा है ऐसा जीना है दुश्वार…
शैशव पर…
सुबह शाम हाथों में रहता ,
अपने सुख दुःख उससे कहता,
हुआ मशीनी अब तो बालक खाता, है फटकार ,
बनकर रोबोट सा वैज्ञानिक करता, चमत्कार
मोबाइल का नशा है ऐसा … जीना है दुश्वार…
शैशव पर…
अपना भी अब हुआ पराया,
बच्चों पर आया का साया,
डैडमाॅम के आगे सिसके बचपन बारम्बार बना बनाया,
खेल है बिगड़ा हो गया बंटाधार ,
मोबाइल का नशा है ऐसा जीना है दुश्वार…
शैशव पर…
,,,,,,,,, डा.अंजु लता सिंह नई दिल्ली

 

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