“कृष्ण” मैं बन जाऊं तुम “राधा” बन जाओ== विनोद शर्मा विश

थोड़ी नहीं कान्हा “बाँसुरी” जिभर बजाओ, जिधर भी देखूं कान्हा तुम ही नजर आओ। एक ही नहीं सारी मनपसंद धुन ले आओ, बाँसुरी की धुन पे कान्हा नाचोऔर नचाओ। गोपियों संग भले ही तुम रास लीला रचाओ, अपनी राधा को भी मुरली की धुन सुनाओ। मैं तुममें घुल जाऊ तुम मुझमें समां जाओ, मैं ...
 

 

थोड़ी नहीं कान्हा “बाँसुरी” जिभर बजाओ,
जिधर भी देखूं कान्हा तुम ही नजर आओ।

एक ही नहीं सारी मनपसंद धुन ले आओ,
बाँसुरी की धुन पे कान्हा नाचोऔर नचाओ।

गोपियों संग भले ही तुम रास लीला रचाओ,
अपनी राधा को भी मुरली की धुन सुनाओ।

मैं तुममें घुल जाऊ तुम मुझमें समां जाओ,
मैं धुन बनूं”मुरली” की कान्हा तुम बजाओ।

एक बार तुम राधा बनो मुझे कृष्ण बनाओ,
मेरी मन की पीड़ा तुम सहन करके दिखाओ।

मुरली की जगह अधरों से तुम मुझे लगाओ,
“कृष्ण” मैं बन जाऊँ तुम”राधा” बन जाओ।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,… विनोद शर्मा विश