मदिरा सवैया सृजन ==अर्चना लाल
【1】 भूल गई सब लाज पिया बिन , मैं बस जीवन वार चली। ज्ञान सुधा सब मंद पड़ी अब , मोहन गौरव हार चली ।। नैनन में बदरा झलके नित , अंतस एक पुकार चली। प्रेम कहाँ दिल में रहता अब , नैन नदी की धार चली।। 【2】 कोमल है कलिका सखि री, अंग ...
Dec 3, 2019, 05:11 IST
【1】
भूल गई सब लाज पिया बिन ,
मैं बस जीवन वार चली।
ज्ञान सुधा सब मंद पड़ी अब ,
मोहन गौरव हार चली ।।
नैनन में बदरा झलके नित ,
अंतस एक पुकार चली।
प्रेम कहाँ दिल में रहता अब ,
नैन नदी की धार चली।।
【2】
कोमल है कलिका सखि री,
अंग अभी लहका – लहका ।
रंग चढ़ा जब लाल सुहावन,
यौवन है बहका- बहका।।
नैनन में कजरा शुभ शोभित ,
पाँव महावर है महका ।
पूर्णिम पावन सी यह रूपक ,
देख इसे मन है चहका।।
,,,,,,,,अर्चना लाल जमशेदपुर. झारखंड