ग़जल़ == ‎Reetu Gulati‎ 

बड़ी बेअदब रही, दूसरो को झिझोड़ती रही मैं। अदब हो मेरा, ख्याब नजरो मे पालती रही मैं। सेवा कभी किसी अपनो की, बिल्कुल की नही मैं। सेवा ले लू ये शौक सपने मे पालती रही हूं मै।। दुखाती रही दिल अपने बड़ो का दिन रात मैं। इज्जत हो मेरी ये वहम दिल मे पालती ...
 

 

बड़ी बेअदब रही, दूसरो को झिझोड़ती रही मैं।
अदब हो मेरा, ख्याब नजरो मे पालती रही मैं।

सेवा कभी किसी अपनो की, बिल्कुल की नही मैं।
सेवा ले लू ये शौक सपने मे पालती रही हूं मै।।

दुखाती रही दिल अपने बड़ो का दिन रात मैं।
इज्जत हो मेरी ये वहम दिल मे पालती रही मै।।

ना पूछा हाले बीमारी मे हाल ही उनका मैं
खड़े हो सिरहाने मेरे ये ख्याब बुनती रही मैं।।

देती रही नसीहते ठीक-ठाक थे वो अपने, मैं
अपनी बेबसी मे नसीहते,दगा करती रही मै।।

तोड़ती रही दिल उनके,गुमान दिल मे पालती मैं।
खाली काग़च पर ल़कीरे खीचती रही हूं मै।।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, Reetu Gulati