“कोई नहीं ” ==Roopal Upadhyay

झूठ कहती हैं दुनिया कोई किसी का नहीं साथ निभाते हैं लोग छोड़ते कभी तन्हा नहीं । कितने हसीन चेहरों में ढूंढने लगती हैं नजर उन्हे जिनसे हमारा कोई वैसे कोई रिश्ता नहीं । हवाओं की सी नमी जब आंखो को धुंधलाए समेट लेता मोती सारे वो जो कोई नहीं । पथरीले डगर की उष्णता ...
 

झूठ कहती हैं दुनिया
कोई किसी का नहीं
साथ निभाते हैं लोग
छोड़ते कभी तन्हा नहीं ।

कितने हसीन चेहरों में
ढूंढने लगती हैं नजर
उन्हे जिनसे हमारा कोई
वैसे कोई रिश्ता नहीं ।

हवाओं की सी नमी
जब आंखो को धुंधलाए
समेट लेता मोती सारे
वो जो कोई नहीं ।

पथरीले डगर की उष्णता
से मनोबल टूटने लगे
थाम लेता हाथ कोई
जिससे कोई नाता नहीं ।

जीवन मावस पूनम सा
कई रंग बदलता हैं
नहीं बदलता किरदार अपना
जो लगता कुछ नहीं ।

,,,,,,,,,,,,,,रूपल उपाध्याय