मुकेश जी की “सेफ्रीन ” असीम तृप्ति की अनुभूति कराती है== Anima Das

 

मुकेश जी की “सेफ्रीन ” असीम तृप्ति की अनुभूति कराती है== Anima Das

“मन की उदासी को,
बेकाबू होने की इजाजत नहीं
उदासियों के जंगल मेंं ,
गुम होने की इजाज़त नहीं
जो कथा मन मेंं हलचल मचा कर सो जाती है
उसे मन गुफ़ा मेंं वक्त को थामे , दर
खो जाने की इजाज़त नहीं । ”
…………………

श्री मुकेश दुबे जी की कहानियों की यही मन की भाषा है ? क्या कहानीकार यह सोच कर गढ़ लेता है अपने ही हाथों से कच्चे मिट्टी से बनें कलाकारी बर्तनों की तरह अपनी कहानियाँ ?
अचम्भित हूँ , स्तब्ध हूँ ! दशकों से कहानियों को कलम से अभिव्यक्त करते श्री मुकेश जी की “सेफ्रीन ” ने मेरे मन मस्तिष्क को आलोडित कर दिया । एक से बढ़ कर एक सुंदर कहानियों से भरी ये किताब पाठकों के चिंतन को भी श्रेष्ठता प्रदान करती हैं ।
हर कहानी का अंत असीम तृप्ति की अनुभूति कराती है । हर कहानी का पात्र स्वयंचालित है अपना चरित्र निभाने के लिये । मानो जैसे , इन्हें किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं । स्वतः बहते भावों की सरिता को किसी चट्टान पर अपने अस्तित्व का बिंब छोड़ जाना, इन कहानियों मेंं ऐसी गुणवत्ता है । लेखक की कलम की धार जितनी तीक्ष्ण है उतनी ही प्रभावी है । हर कहानी का अंत सुखद और भव्य है । “सेफ्रीन ” की पहली कहानी “सेफ्रीन” बर्णावली मेंं आठवां रंग जोड़ने मेंं सफल रही । प्रेम हर चरम सीमा को लांघते हुए भिन्न विचारों के नियमों से मुक्त हो कर, अपना एक जीवंत ग्रह स्थापित कर सकता है ..ये इस कहानी का सार मर्म है जो पाठकों की मनोभूमि पर एक दृढ़ इच्छा की रेखा खींचने मेंं समर्थ है । “सुचित्रा ” की कल्पना मेंं अनियंत्रित चेतना को संभालते हुए किसी के लिए भी कहानीकार की सृजनात्मक लेखनी मेंं लुप्त हो जाना असंभव नहीं । “तर्पण ” और “मृगतृष्णा ” से मिलकर ऐसा लगा की ऐसी कौन सी नक्षत्रीय बूंद भर गई है इस लेखनी की नींव पर जो पाठकों की अंतर्वेदना से परिचित है ?
हर समाजिक तथ्यों से मुकेश जी का कल्पनातीत संबध है जिनसे उनको अपनी रचना की आत्मा को चिर काल जीवित रखने की परम तुष्टि देती है । ” सेफ्रीन ” की अंतिम कहानी “डैडी “ने अति दार्शानिक स्तर पर जीवन के हर रिश्ते का महत्व व विशिष्टता को प्रतिपादित किया है जिससे मृत्यु उपरांत जीवन के करुणार्द्र हृदय की स्थिति ऊद्भासित हुई है ।
श्री मुकेश दुबे जी एक संवेदनशील व्यक्तित्व की परिभाषा हैं। उन्होंने समाज के कई पक्षों को अपने विचारशील हृदय , प्रबुद्धता और लेखनी की नमनीयता से इन कहानियों के पात्रों का विभिन्न भावों से चित्रण किया है । और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हर कहानी का सकारात्मक अंत पाठकों को रोमांचित करता है । हर एक कहानी लेखक के जीवन दर्शन का भी प्रतिफलन है जिससे यह सिद्ध होता है की श्री मुकेश जी ने जीवन का बहुत ही समीप से निरीक्षण किया है ।
साथ ही चर्चा करती हूँ श्री मुकेश जी और एक और तिलिस्मी दुनिया की कथाओं से बुनी “कम्मो मटियारिन ” के बारे मेंं जिसने हर पीढ़ी के पाठकों को प्रभावित किया है । अद्भुत अद्वितीय लेखनी की उत्कृष्टतम सृष्टि है यह संग्रह । रचयिता जैसे मानो मनोवैज्ञानिक है । मनोव्यथा को अति स्वाभविक ढंग से चित्रण किया है इस संग्रह मेंं । भिन्न- भिन्न आंचलिक भाषाओं सहित उससे जुड़ी कला और संस्कृति के भी चिह्न भी परिलक्षित होते है इसमें । शिल्प वैविध्य के साथ कथा लिखने वाले कथा शिल्पी श्री मुकेश जी की इस संग्रह की शीर्षक कहानी बड़ी ही रोचक है , जिसका पात्र अपने रचयिता को शिखर चढ़ते हुए भूला नहीं और समाज को अपनी श्रेष्ठ मानवता का परिचय भी दिया है । मन मृदा को सिक्त अनुभवों से कोमलता की अनुभूत कराती इस संग्रह की कई कहानियाँ युवा वर्ग के लिये सार्थक संदेश देते आदर्श और सिद्धांत भी है । लगभग हर कहानी लेखक की उन्नत विचारधारा का प्रतिबिंब है । ये शिल्प है जिसे मुकेश जी की लेखनी ने स्वतंतत्रता और उन्मुक्तता दी है कागजों की परिधि से प्रवाहित हो कर साहित्य जगत को अपनी निश्चयात्मक बोध, दार्शानिक तथ्यों, व प्रेरणावर्धक उक्तियों से आर्द्र कर सके । “कम्मो मटियारिन ” स्वयं ही कहानीकार की अंतर्ध्वनि है जो पाठकों की हृदय मेंं सदियों तक प्रतिगुंजित होती रहेंगी ।

महान कहानीकारों के नाम के साथ यदि और एक नाम जुड़ जाए तो ये हिंदी साहित्य जगत का परम सौभाग्य होगा ।”सेफ्रीन” और “कम्मो मटियारिन” की सफलता पर श्री मुकेश दुबे जी को बधाई देते हुए और हृदय गह्वर से शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए …🙏

 

Share this story