प्रेम_ग्रन्थ_का_पारायण…‎Raju Upadhyay‎ 

 

प्रेम_ग्रन्थ_का_पारायण…‎Raju Upadhyay‎ 

 

पीर प्रेम की अद्भुत देखी,देखा है उसमे एक आकर्षण।
हर मन के चित्रकूट में बसती पीड़ा की एक रामायण।

ढाई आखर ग्रन्थ को बाँचा सारी उमर सभी ने जग में,
भूल गये कृष्ण का दर्शन,और भूले राधा के अवतरण।

आंसू की पंचवटी में ही सार विरह व्यथा का मिलता,
वनवासिन सीता से समझो,नेह का निर्मल सदाचरण।

पीड़ाओं का महासमर हो, और ना छूटे डोर प्रेम की,
सचमुच ! प्रेम ग्रन्थ का यह भी, तो है एक पारायण।

रूप भँवर में उलझे मन ने सारी उमर एक नाम जपा,
बड़ी भूल थी,इतने भर से मिल जाते शायद नारायण।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,#राजू_उपाध्याय

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