एक चुटकी भर सिंदूर==‎Reetu Gulati‎ 

 

एक चुटकी भर सिंदूर==‎Reetu Gulati‎ 

भर कर मांग पुरूष अपनी स्त्री की,
एक चुटकी भर सिंदूर से,
पुरूष पा जाता है अधिकार।
स्त्री अपने सिंदूर को निभाती है!
पूरे प्रेम व समर्पण से!
गर्व से लगाती है अपनी मांग मे,
वो चुटकी भर सिंदूर!
पहन लेती हरी लाल चूडियां!
सहचर को समझ स्वामी!
पहन लेती है बिछुवे!
समझ सुहाग की निशानी!
दौड़ती रहती है दिन भर!
गृहस्थी के कामो मे,
पहन मोटी-मोटी पायले!
नही समझी वो इन्हे बेडियां,
करती है खुद को समर्पित!
मात्र एक चुटकी भर सिंदूर के लिये,
दमक उठता है तेज से चेहरा,
लगाकर हो जाती है खूबसूरत!
एक चुटकी भर सिंदूर से!
जीत लेना चाहती है खुद को रब से,
जैसे जीता सावित्री ने सत्यवान को!
करती रहती है अकसर वो उपवास!
निभा देती है रस्मे रिवाज!
एक चुटकी सिंदूर के लिये!
सह लेती है यातनाएँ भी!
गर दे जो सहचर अकसर!
लाज निभा देती है वो!
बस एक चुटकी सिंदूर !
हो जाती है तेजमय वो!
शकित स्वरूपा लगाकर !
एक चुटकी भर सिंदूर।,पिया की,
लम्बी आयु की कामना स्वरूप,
वो हरदम भर लेती अपनी मांग मे,
एक चुटकी भर सिंदूर ।।

………………………ऋतु

Share this story