ये कैसा गणतंत्र है………? = Anuradha Pandey
दिशाकाश में झींगुर के स्वर , जहाँ जुगनुओं की कुछ टिम-टिम।
बुधिया का तो वहीं निलय है, क्या उससे तुम मिल पाओगे ?
अधनंगे- से शैशव होंगे , वहाँ न कुछ यौवन की लाली ।
तनी हुई सर्वत्र मिलेगी , वहाँ क्षुधा की सतत दुनाली ।
लेकर उसको भी क्या करना, आश्वासन की झोली खाली ?
पाँच वर्ष उपरांत कहो क्या, खाली हाथ पुनः जाओगे ?
बुधिया का तो वहीं निलय है ,क्या उससे तुम मिल पाओगे?
तुम ही हो उसके हितचिंतक, कितने युग तक और कहोगे ?
छाछ बची उसके घर केवल , उसको भी क्या और महोगे?
इस अपने मृण्मय जीवन हित, कितने और कुपंथ गहोगे?
नेताजी ! नव मंत्र कहो क्या, अबके उसको समझाओगे?
बुधिया का तो वहीं निलय है, क्या उससे तुम मिल पाओगे?
आना-जाना लगा हुआ है, यह तो चंद दिनों का मेला ।
दर्शक को भी अरे ! मदारी, दिखलाओगे कितना खेला ?
छेदू तो मर जायेगा ही, बचा न घर में इक भी ढ़ेला?
तुम भी बोलो ! लेकिन मरकर, यम को क्या मुख दिखलाओगे ?
बुधिया का तो वहीं निलय है,क्या उससे तुम मिल पाओगे?
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अनु