भीतर छिपे राम - मीनू कौशिक

 
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राम  के  नाम  का  जाम , जिसने  पिया
ग़म  जमाने  के  सब , भूल  जाएगा  वो ।
ये  वो  संजीवनी , इसको  जिसने  पिया ,
दर्द  में  भी  सदा  , मुसकुराएगा  वो ।।
घोर  अंधकार  में  , जब  निराशा  छले ।
राम   बनके   सदा , दीप  आशा   जले ।
राह  सूझे  नहीं , जब  किसी  मोड  पर ।
बांह  थामे   सदा , राम  तब   दौड़  कर ।
नाव  मझधार  में , हो  फंसी  जो  कभी ।
बंद   हों   द्वार ,  संसार  के   जो   सभी ।
राम   के   नाम   की , लेके   पतवार  को 
हर  भंवर  के  सदा   पार ,  जाएगा   वो ।।
राम   के  नाम  का  जाम  जिसने  पिया........
नेह  करुणा  दया ,  दीन  के  राम  हैं ।
त्याग  संयम  सदा  , शील  के  धाम  हैं ।
भक्त  वत्सल  प्रभु , भक्त  के  प्राण  हैं ।
राम  का  नाम  ही ,  कष्ट  से  त्राण  हैं । 
धन  प्रतीष्ठा  कोई , बांध  सकती  नहीं ।
तर्क  बुद्धि  इन्हें  , जान  सकती  नहीं ।
प्रेम  की  डोर   में ,  ये   बंधे  भाव  से । 
बेर    खाएँगे   झूठे ,  बड़े   चाव   से  । 
मेरे  राघव  के  चरणों  में , मन  सौंप दे
तेरी  पीड़ा  को  अपना,  बनाएगा  वो ।।
राम के नाम का , जाम जिसने पिया .........
जन्म  से  मृत्यु  तक , राम  का  संग  है । 
अपने   मन  पे  चढ़ा , राम  का  रंग   है ।
छल-कपट  से  है  अपना ,  नहीं  वास्ता । 
संग  सच  का   है  अपना ,  यही  रास्ता ।
राम के गुण ग्रहण , कर सकें आज कुछ ।
झूठ   का   ये  अंधेरा ,  घटे  आज  कुछ ।
आसुरी    वृत्तियाँ  ,  आज    हावी    हुई ।
 हर   तरफ   बस  ,   बुराई   प्रभावी  हुई ।
जो   जगाएगा   भीतर ,  छिपे   राम   को ,
इस   अंधेरे  पे   बस  , जीत  पाएगा  वो ।।
राम  के  नाम  का , जाम  जिसने पिया.. .....
✍️मीनू कौशिक "तेजस्विनी", दिल्ली

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