अंत नैन का ढ़पना -- अनिरुद्ध कुमार
Tue, 17 Jan 2023

जीवन क्या रिश्तों का बंधन, कौन यहाँ पे अपना।
दुख भी तेरा, सुख भी तेरा, समय ताल पे तपना।।
सुख-दुख तो जीवन की थाती, बैठे देखो सपना।
व्याकुलता में सर मटकाये, नाहक लागा जपना।।
जीवन लगता भूल-भुलैया, सोंच सोंच के गपना।
सांस ताल पे जीवन थिरके, हरपल माथा खपना।।
चिंतित मनवा गोता मारे, क्या जीवन में छिपना।
देख पसारा इस जीवन का, सतरंगी यह लिपना।।
कठपुतली सा जीवन लागे, मिले इसारा टपना।
आँख खोल दुनिया को देखे, अंत नैन का ढ़पना।।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड