मेरी कलम से - अनुराधा पाण्डेय
Sat, 6 Aug 2022

मुतमईन मैं भी रही,प्रेमिल घटा निहार।
निष्ठुर!बादल बाँवरा, बरसाए अंगार।।
वारिद जितना हो घना, कितना भी गम्भीर।
किन्तु तिमिर की पीर से ,खोता मन का धीर।
कुंचित घन अलकावली अम्बर उन्नत माथ।
शब्द कहाँ तौलूँ तुम्हें, उपमा सकल अनाथ।।
उन्मुख यौवन यों लगे,कज्जल कूट समान।
मद घूर्णित तीखे नयन,अक्षत रस की खान।।
असित निशा अरु नील पट, डार चली निज देह।
मृगलोचनि ऐसी लगे, विद्युत दमके मेह।।
- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली